गैर-कृषि क्षेत्र
आजीविका की वैकल्पिक सुविधा प्रदान कर कृषि पर ग्रामीण भारत की अत्यधिक निर्भरता को कम करने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण कृषीतर क्षेत्र का संवर्धन अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसके द्वारा छोटे और सीमांत किसान तथा कृषि से संबंधित मजदूरों का शहरी क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में पलायन को भी रोका जा सकता है.
पिछले तीन दशकों से कृषि क्षेत्र के विकास के लिए नाबार्ड ने कई पुनर्वित्त और संवर्धनात्मक योजनाएं तैयार किए हैं तथा क्षेत्र स्तर की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उनका विस्तार करने तथा उसमें संशोधन करने के लिए अपने प्रयास भी जारी रखे हैं. ऋण के अधिक प्रवाह, वंचितों के लिए ऋण के प्रावधान तथा छोटे कुटीर और ग्रामीण उद्योगों, हथकरघा, हस्तशिल्प के लिए संयोजन हेतु प्रावधान तथा ग्रामीण अंचलों के विकेंद्रीकृत क्षेत्रों में अन्य ग्रामीण शिल्प तथा सेवा क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.
ग्रामीण कृषि क्षेत्र के लिए मार्केट के विकास के साथ ही ग्रामीण युवकों और महिलाओं के बीच उद्यमिता संस्कार और आवश्यक कौशल निर्माण नाबार्ड के लिए प्राथमिकता का क्षेत्र रहा है. नाबार्ड एक अलग निधि के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और कृषि से संबन्धित क्षेत्रों के लिए नवोन्मेष का संवर्धन करने के लिए सक्रिय रुप से कार्य कर रहा है .
ग्रामीण कृषीतर क्षेत्र पर नीति
वर्तमान नीति के अनुसार नाबार्ड ऐसे कार्यकलापों के संवर्धन के लिए प्रारंभ से लेकर अंत तक समाधान हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है जिससे ग्रामीण कृषितर क्षेत्र के अंतर्गत आजीविका का सृजन होता है अथवा आजीविका में वृद्धि होती है. ग्रामीण कृषीतर क्षेत्र के अंतर्गत व्यवहार्य गतिविधियों के लिए किसी परियोजना में संभाव्यता सर्वेक्षण, क्षमता निर्माण, बुनियादी सुविधाएं, सहयोग सेवाएं, विपणन पहलू इत्यादि को शामिल करना अपेक्षित है. शुरू से लेकर अंत तक समाधान के भाग के रूप में विविध हितधारकों की उपलब्धता के आधार पर सहयोग के लिए एक अथवा सभी गतिविधियों को शामिल किया जा सकता है.
सहयोग
परियोजना की प्रकृति तथा परियोजना में शामिल गतिविधियों, हितधारकों इत्यादि के आधार पर अनुदान, ऋण और अनुदान अथवा ऋण / परिक्रामी निधि सहायता के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.
पात्र संस्थाएं
गैर - सरकारी संगठन, स्वयं सहायता समूह संघ, कृषक क्लब संघ, उत्पादक संगठन, सहकारी संस्थाएं (पैक्स समेत) सरकारी एजेंसियां, बैंक, एनबीएफसी, कंपनियां (धारा 25 में शामिल कंपनियां) तथा ऐसी अन्य एजेंसियां जो आजीविका संवर्धन गतिविधियों में कार्य कर रही हैं.
2012 13 से आरएनएफएस नीति प्रारंभ होने के साथ ही निम्नलिखित पुराने फॉर्मेट वाली स्टैंडअलोन गतिविधियों / संवर्धनात्मक कार्यक्रमों को बंद कर दिया गया है और इसके लिए नई मंजूरियां नहीं प्रदान की जा रही हैं. तथापि पूर्व में मंजूर की गई परियोजनाएं चरणबद्ध रूप से जारी रहेंगी.
- प्रशिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम
- ग्रामीण उद्यमिता और कौशल विकास कार्यक्रम (एन जी ओ के माध्यम से)
- मास्टर शिल्पकार द्वारा प्रशिक्षण
- प्रशिक्षण सह उत्पादन केंद्र
- व्यावसायिक प्रशिक्षण सह कौशल विकास केंद्र
- कारीगर समूह
- मुख्य इकाई
- बाजार उन्मुख प्रशिक्षण
- सुधा
- रूरल मार्ट
- रूरल हॉट
- अरविंद
- महिमा
- डब्ल्यूडीसी
- देवता
- जेंडर मीट्स
- पर्यावरण बैठकें
- ड्रिप
विपणन पहलें
कारीगर मार्केटिंग आयोजनों पर न सिर्फ अपने उत्पाद बेच सकें बल्कि अपने उत्पादों का विपणन भी कर सकें तथा भविष्य में बेहतर मूल्य प्राप्त करने के लिए बाजार की फीडबैक से लाभान्वित हो सकें इस बात को ध्यान में रखते हुए चुनिदा आधार पर अनुदान के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.
उद्यमिता और कौशल विकास
ग्रामीण उद्यमिता विकास कार्यक्रम (आरईडीपी ), कौशल विकास / अपग्रेडेशन पहलें (एसडीआई )
ग्रामीण बेरोजगार युवकों की क्षमता निर्माण के लिए सहायता प्रदान करने के साधन के रूप में गैर - सरकारी संगठनों और अन्य संस्थाओं के माध्यम से प्रायोगिक आधार पर इस योजना को नब्बे के दशक के प्रारंभ में शुरू किया गया था जिससे ग्रामीण युवक अपने निजी उद्यम स्थापित कर सकें. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए यह कार्यक्रम एक सफल मॉडल के रूप में सिद्ध हुआ. नाबार्ड ने रुपए 107.82 करोड़ की वित्तीय सहायता से 29652 आरईडीपी / एसडीआई के संचालन हेतु सहायता प्रदान की जिसके द्वारा 7.60 लाख बेरोजगार ग्रामीण युवकों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया. अब यह कार्यक्रम प्रचलन में नहीं है.
रुडसेटी / रुडसेटी की तरह की संस्थाएं / आरसेटी
उद्यमिता और कौशल विकास पहलों के संस्थानीकरण के प्रयास के रूप में नाबार्ड विशिष्ट संस्थाओं को सहायता प्रदान करता है जैसे रुडसेटी / रुडसेटी की तरह की संस्थाएं / आरसेटी, जो विभिन्न कौशलों पर ग्रामीण युवकों और महिलाओं को उद्यमिता विकास और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं जिससे उन्हें आजीविका के लिए बेहतर विकल्प प्राप्त होते हैं. यह सहायता उन्हीं संस्थाओं को प्रदान किया जाता है जो नाबार्ड द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हैं जैसे प्रशिक्षण के पश्चात 80% से अधिक लोगों की प्लेसमेंट.
ग्रामीण नवोन्मेष निधि (आरआईएफ़)
ग्रामीण नवोन्मेष निधि एक ऐसी निधि है इसे नवोन्मेषी, जोखिम की दृष्टि से अनुकूल, कृषि, कृषीतर और सूक्ष्म वित्त के क्षेत्र में गैर - पारंपरिक प्रयोगों के लिए सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसरों और रोजगार संवर्धन के लिए सहायता मिलने की संभावना बढ़ सके.
ग्रामीण नवोन्मेष निधि के अंतर्गत ऋण / अनुदान / इंक्यूबेशन निधि सहायता अथवा इन सभी तीनों घटकों के रूप में सहायता उपलब्ध होती है. यह सहायता आवश्यकता आधारित, लागत प्रभावी और परियोजना की जरूरत के आधार पर तैयार की गई है तथा प्रस्तावक द्वारा किए जा रहे कुछ वित्तीय अंशदान को भी ध्यान में रखा गया है. इसमें मामला दर मामला आधार पर निर्णय लिया जाता है.
नाबार्ड ने केरल, ओड़िशा, राजस्थान और गोवा में ग्रामीण आवासन के अंतर्गत 6 परियोजनाओं के बाबत रुपये 1800 लाख की ऋण सहायता तथा रुपये 17 लाख की अनुदान सहायता मंजूर की है. ग्रामीण स्वच्छता के अंतर्गत 777 इकाइयों के लिए रूपये 100 लाख की ऋण सहायता मंजूर की गई है.
- प्रायोगिक आधार पर ई - पोर्टल के लिए सहायता
नाबार्ड ने मेसर्स जाक़ ई – वेंचर्स, नई दिल्ली और मेसर्स ईफ्रेश पोर्टल प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद के माध्यम से ग्रामीण कारीगरों के उत्पादों के विपणन के लिए पोर्टल के विकास के लिए प्रायोगिक आधार पर सहायता प्रदान की है जिसे क्रमशः “shilpihaat.com” और “ekraftindia.com” के नाम से प्रारंभ किया गया है. इन पोर्टल्स का शुभारंभ माननीय केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा 16 जनवरी 2015 को किया गया.
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